सरकारी एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी वाले पीपीपी मॉडल के स्कूलों में बच्चों के विकास से जुड़ी शैक्षिक, भावनात्मक और व्यावहारिक समस्याओं को सुलझाने के लिए इमोशन गुरु तैनात करने की तैयारी है। कंप्यूटर, इंटरनेट और दूसरी तमाम सुविधाओं से लैस ये स्कूल वाकई सबसे अलग होंगे। स्वास्थ्य शिक्षा के साथ ही छात्रों की सेहत की नियमित जांच की व्यवस्था भी इन विद्यालयों में होगी। सूत्रों के मुताबिक ढाई हजार गैर पिछड़े ब्लाकों में खुलने वाले इन स्कूलों का मसौदा तैयार है। उसे बस केंद्रीय कैबिनेट की हरी झंडी मिलने की देर है। उम्मीद है यह हफ्ते भर में हो जाएगा। बताते हैं कि कक्षा छह से 12 तक के इन स्कूलों में विज्ञान, गणित और अंग्रेजी की पढ़ाई पर खास जोर होगा।
ज्यादा अच्छी पढ़ाई के मद्देनजर प्रत्येक कक्षा में एक शिक्षक पर सिर्फ 25 छात्रों को पढ़ाने का जिम्मा होगा। राष्ट्रीय आदर्श विद्यालय के नाम से खुलने वाले इन स्कूलों में दाखिले के लिए एक टेस्ट होगा। एक स्कूल में 2500 से अधिक छात्र नहीं होंगे। सरकार एवं निजी क्षेत्र के बीच कोटे की सीटों का बंटवारा 50-50 का होगा। निजी क्षेत्र के आर्थिक पहलू के मद्देनजर उन्हें 60 प्रतिशत तक सीटें दी जा सकती हैं। उस स्थिति में 40 प्रतिशत सीटें सरकारी कोटे में होंगी। सरकारी कोटे की सीटों में अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग का आरक्षण लागू होगा। इसमें 30 प्रतिशत सीटें लड़कियों की होंगी। कक्षा छह से आठ तक बच्चों से कोई फीस नहीं ली जाएगी। कक्षा नौ से 12 के तक सरकारी कोटे से दाखिल अनुसूचित जाति, जनजाति, लड़कियों एवं गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों के छात्रों से 25 रुपये और बाकी चयनित छात्रों से 50 रुपये फीस लिया जाना प्रस्तावित है। निजी क्षेत्र को अपने प्रबंधन कोटे के छात्रों से
समुचित फीस वसूलने की छूट होगी। ब्लाक मुख्यालयों पर खुलने वाले पीपीपी मॉडल इन स्कूलों के लिए सरकार और निजी क्षेत्र के बीच पहला करार दस साल का होगा। इसे बाद में बढ़ाया जा सकेगा। अलबत्ता, स्कूल संचालन में आने वाले खर्चे में सरकार हाथ बंटाएगी। उसी क्रम में वह सरकारी कोटे के छात्रों पर आने वाले खर्च (केंद्रीय विद्यालय के छात्र पर आने वाले खर्च के आधार पर) का छह माह का एडवांस भुगतान कर देगी। अपने कोटे के छात्रों पर हर माह आने वाले कुल खर्च के 25 प्रतिशत का भुगतान भी संसाधनों के मद में सरकार अलग से करेगी। बुनियादी सुविधाओं की पूरी जिम्मेदारी निजी क्षेत्र की होगी। जमीन का इंतजाम भी निजी क्षेत्र को ही करना होगा।
ज्यादा अच्छी पढ़ाई के मद्देनजर प्रत्येक कक्षा में एक शिक्षक पर सिर्फ 25 छात्रों को पढ़ाने का जिम्मा होगा। राष्ट्रीय आदर्श विद्यालय के नाम से खुलने वाले इन स्कूलों में दाखिले के लिए एक टेस्ट होगा। एक स्कूल में 2500 से अधिक छात्र नहीं होंगे। सरकार एवं निजी क्षेत्र के बीच कोटे की सीटों का बंटवारा 50-50 का होगा। निजी क्षेत्र के आर्थिक पहलू के मद्देनजर उन्हें 60 प्रतिशत तक सीटें दी जा सकती हैं। उस स्थिति में 40 प्रतिशत सीटें सरकारी कोटे में होंगी। सरकारी कोटे की सीटों में अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग का आरक्षण लागू होगा। इसमें 30 प्रतिशत सीटें लड़कियों की होंगी। कक्षा छह से आठ तक बच्चों से कोई फीस नहीं ली जाएगी। कक्षा नौ से 12 के तक सरकारी कोटे से दाखिल अनुसूचित जाति, जनजाति, लड़कियों एवं गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों के छात्रों से 25 रुपये और बाकी चयनित छात्रों से 50 रुपये फीस लिया जाना प्रस्तावित है। निजी क्षेत्र को अपने प्रबंधन कोटे के छात्रों से
समुचित फीस वसूलने की छूट होगी। ब्लाक मुख्यालयों पर खुलने वाले पीपीपी मॉडल इन स्कूलों के लिए सरकार और निजी क्षेत्र के बीच पहला करार दस साल का होगा। इसे बाद में बढ़ाया जा सकेगा। अलबत्ता, स्कूल संचालन में आने वाले खर्चे में सरकार हाथ बंटाएगी। उसी क्रम में वह सरकारी कोटे के छात्रों पर आने वाले खर्च (केंद्रीय विद्यालय के छात्र पर आने वाले खर्च के आधार पर) का छह माह का एडवांस भुगतान कर देगी। अपने कोटे के छात्रों पर हर माह आने वाले कुल खर्च के 25 प्रतिशत का भुगतान भी संसाधनों के मद में सरकार अलग से करेगी। बुनियादी सुविधाओं की पूरी जिम्मेदारी निजी क्षेत्र की होगी। जमीन का इंतजाम भी निजी क्षेत्र को ही करना होगा।
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