Monday 12 March 2012

लक्ष्य का अवरोह:EDITORIAL OF DAINIK JAGRAN DATED 13.03.12

शैक्षिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़े जिलों को भी विकास की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार के आर्थिक सहयोग से शुरू हुई आरोही मॉडल स्कूल योजना में प्रयोगशीलता के साथ यदि प्रगतिशीलता व परिणामोन्मुखी दीर्घकालिक चिंतनशीलता दिखाई देती तो यह सार्थक सकारात्मक दिखाई देती, बोझिल नहीं। प्रदेश में हालांकि भरपूर शुरुआती उत्साह दिखाया गया परंतु उस योजना क्या लाभ जिसमें संसाधन बेतरतीब, साधक दिशाहीन और साध्य ओझल रहे। योजना का सर्वाधिक पीड़ादायक पहलू यह है कि नियमित सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को सप्ताह में तीन दिन या महीने में 10 से 12 दिन आरोही स्कूलों में भेजा जा रहा है। इससे आरोही स्कूल में पढ़ाई नियमित
निरंतर रूप से नहीं हो पा रही, साथ ही संबंधित सरकारी स्कूल में भी शिक्षा प्रक्रिया में भारी व्यवधान पैदा हो रहा है। योजना लागू करने से पहले यदि शिक्षा विभाग ने कुछ होमवर्क किया होता तो यह दिक्कत नहीं आती। प्रश्न यह भी है कि क्या केंद्र व राज्य सरकार ने ये आरोही स्कूल प्रयोग के तौर पर एक या दो साल के लिए खोले हैं? यदि उद्देश्य व्यापक है तो आरोही स्कूल के अलग भवन, अलग फर्नीचर, लैब, कंप्यूटर रूम की व्यवस्था के साथ तमाम विषयों के अध्यापकों की अलग से भर्ती क्यों नहीं की गई। व्यावहारिक तथ्य यह भी है कि अध्यापक सिर्फ 12 दिन आएंगे, शेष 18 दिन पाठ्यक्रम का ध्यान कौन रखेगा? क्या 12 दिन में 30 दिन का पाठ्यक्रम पूरा करवाना संभव है? यदि जैसे-तैसे पूरा करवा भी दिया जाए तो शिक्षा की गुणवत्ता कैसी होगी? उधार के बेंच, डेस्क, मेहमान की तरह आने वाले अध्यापक तथा जुगाड़ करके उपलब्ध कराए गए कमरों में बिना लैब, ऑडिटोरियम, कंप्यूटर के आधुनिक शिक्षा की परिकल्पना क्या मृग मरीचिका जैसी नहीं प्रतीत हो रही? छात्र ऐसे स्कूलों की ओर कैसे आकर्षित होंगे? यदि कुछ आए भी तो सरकार के पास कौन सा आकर्षण है जो उन्हें आरोही स्कूल में रोक कर रख सके? क्या आरोही स्कूल सरकारी विद्यालय की उतरन जैसे नजर नहीं आ रहे। सरकार व शिक्षा विभाग को पूरे परिदृश्य का अवलोकन करके अपनी कार्ययोजना की पुन: समीक्षा करनी चाहिए। अध्यापकों की स्थायी तौर पर पर्याप्त संख्या में नियुक्ति की जाए।

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