यूं तो उत्तरप्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव 2012 में होने हैं पर अन्ना हजारे और उनकी टीम द्वारा हाल ही में हुए उपचुनाव में राजनीति में उतरे बगैर ही अपना जलवा दिखाने के बाद केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस की नींद हराम हो गई है।
केंद्र की राजनीति में उत्तरप्रदेश का शुरू से दबदबा रहा है। जवाहरलाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक तमाम जनलोकप्रिय नेताओं की कर्मभूमि उत्तरप्रदेश ही रही है। मायावती, मुलायमसिंह जैसे नेता गठबंधन में शामिल हुए बगैर भी संख्याबल के आधार पर केंद्र सरकार को चमकाने का दम भरते हैं।
उत्तरप्रदेश की राजनीति काफी समय से मायावती और मुलायमसिंह के इर्द गिर्द घूम रही है और कांग्रेस और भाजपा दोनों की हालत यहां पहले से ही पतली है। वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र की रथयात्रा और उमा भारती को यूपी में पार्टी की कमान सौंपने के फैसले से भाजपा की स्थिति में भी सुधार देखा जा रहा है। अमरसिंह द्वारा मुलायम का साथ छोड़ने के बाद राज्य में सपा भी कमजोर हो गई है।
जनलोकपाल बिल पास न करने की स्थिति में अन्ना हजारे द्वारा कांग्रेस का विरोध करने की घोषणा से केंद्र में सत्तारुढ़ इस पार्टी की स्थिति और भी खराब होती प्रतीत हो रही है। हालांकि बिल पास कर कांग्रेस इन चुनावों में अन्ना का समर्थन प्राप्त कर अपनी स्थिति भी मजबूत कर सकती है। देखना है कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी, श्रीप्रकाश जायसवाल, सलमान खुर्शीद और दिग्विजयसिंह जैसे वरिष्ठ नेता यूपी में कांग्रेस की नैया को कैसे पार लगाते हैं। यूपी चुनावों में कांग्रेस की पांच उम्मीद।
सोनिया गांधी
कांग्रेस अध्यक्ष और रायबरेली से सांसद सोनिया गांधी की देश के सबसे सशक्त नेताओं में से एक हैं। सोनिया की अनुपस्थिति में कांग्रेस की स्थिति सभी हाल ही में हुए अनशन के दौरान सभी देख चुके हैं। सोनिया गांधी 1997 से कांग्रेस की कमान संभाल रही है और उन्होंने ही कांग्रेस में ऊर्जा का संचार कर संप्रग गठबंधन पुन: उसे देश की सत्ता दिलवाई। यह कांग्रेस पार्टी के 125 सालों के इतिहास में पहला मौका है, जबकि कोई इतने लंबे समय तक अध्यक्ष पद पर बना रहा।
अन्ना हजारे द्वारा कांग्रेस के विरोध में खुलकर सामने आने और हिसार में कांग्रेस की करारी हार के बाद कांग्रेसियों की निगाहें एक बार फिर सोनिया पर हैं। यूपी विधान सभा चुनाव सोनिया के लिए बड़ चुनौती है। अगर इन चुनावों में कांग्रेस की सीटों में बढ़ोतरी होती है तो देशभर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नए जोश का संचार होगा और सीट कम होने पर यूपी से लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव जीत चुकी सोनिया के 'जादू' की हकीकत सामने आ जाएगी।
केंद्र की राजनीति में उत्तरप्रदेश का शुरू से दबदबा रहा है। जवाहरलाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक तमाम जनलोकप्रिय नेताओं की कर्मभूमि उत्तरप्रदेश ही रही है। मायावती, मुलायमसिंह जैसे नेता गठबंधन में शामिल हुए बगैर भी संख्याबल के आधार पर केंद्र सरकार को चमकाने का दम भरते हैं।
उत्तरप्रदेश की राजनीति काफी समय से मायावती और मुलायमसिंह के इर्द गिर्द घूम रही है और कांग्रेस और भाजपा दोनों की हालत यहां पहले से ही पतली है। वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र की रथयात्रा और उमा भारती को यूपी में पार्टी की कमान सौंपने के फैसले से भाजपा की स्थिति में भी सुधार देखा जा रहा है। अमरसिंह द्वारा मुलायम का साथ छोड़ने के बाद राज्य में सपा भी कमजोर हो गई है।
जनलोकपाल बिल पास न करने की स्थिति में अन्ना हजारे द्वारा कांग्रेस का विरोध करने की घोषणा से केंद्र में सत्तारुढ़ इस पार्टी की स्थिति और भी खराब होती प्रतीत हो रही है। हालांकि बिल पास कर कांग्रेस इन चुनावों में अन्ना का समर्थन प्राप्त कर अपनी स्थिति भी मजबूत कर सकती है। देखना है कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी, श्रीप्रकाश जायसवाल, सलमान खुर्शीद और दिग्विजयसिंह जैसे वरिष्ठ नेता यूपी में कांग्रेस की नैया को कैसे पार लगाते हैं। यूपी चुनावों में कांग्रेस की पांच उम्मीद।
सोनिया गांधी
कांग्रेस अध्यक्ष और रायबरेली से सांसद सोनिया गांधी की देश के सबसे सशक्त नेताओं में से एक हैं। सोनिया की अनुपस्थिति में कांग्रेस की स्थिति सभी हाल ही में हुए अनशन के दौरान सभी देख चुके हैं। सोनिया गांधी 1997 से कांग्रेस की कमान संभाल रही है और उन्होंने ही कांग्रेस में ऊर्जा का संचार कर संप्रग गठबंधन पुन: उसे देश की सत्ता दिलवाई। यह कांग्रेस पार्टी के 125 सालों के इतिहास में पहला मौका है, जबकि कोई इतने लंबे समय तक अध्यक्ष पद पर बना रहा।
अन्ना हजारे द्वारा कांग्रेस के विरोध में खुलकर सामने आने और हिसार में कांग्रेस की करारी हार के बाद कांग्रेसियों की निगाहें एक बार फिर सोनिया पर हैं। यूपी विधान सभा चुनाव सोनिया के लिए बड़ चुनौती है। अगर इन चुनावों में कांग्रेस की सीटों में बढ़ोतरी होती है तो देशभर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नए जोश का संचार होगा और सीट कम होने पर यूपी से लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव जीत चुकी सोनिया के 'जादू' की हकीकत सामने आ जाएगी।
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